पोक्सो अधिनियम 2012 : पीड़िता के बयान दर्ज होने में विलंब आरोपी को ज़मानत पर रिहा करने से नहीं रोकता : जम्मू और कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट
- Hindi
- June 1, 2023
- No Comment
- 1277
जम्मू कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने पिछले महीने पॉक्सो अधिनियम के तहत जेल में बंद आरोपी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पीड़िता द्वारा गवाही से बचने की कार्रवाई आरोपी को ज़मानत पर रिहा किये जाने के लिए प्रयाप्त है।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि मात्र इस लिए आरोपी की ज़मानत याचिका पर विचार अनिश्चित काल के लिए नहीं टाला जा सकता क्यूंकि कि पीड़िता कोर्ट के सामने हाज़िर नहीं है।
इस मामले में आरोपी को आईपीसी की धारा 363,109 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत 27 अप्रैल 2020 को हिरासत में लेने के बाद 13 अक्तूबर 2021 को उसके खिलाफ आरोप तय किया गया था। इस मामले में ट्रायल अभी तक पूरा नहीं है।
याची ने निचली अदालत में ज़मानत के लिए दो बार आवेदन किया था लेकिन पीड़िता का बयान दर्ज न होने के कारण याची की ज़मानत याचिका को निचली अदालत ने ख़ारिज कर दिया था।
निचली अदालत द्वारा पहली बार ज़मानत याचिका ख़ारिज किये जाने के बाद याची ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी लेकिन कोर्ट ने उसे पुनः निचली अदालत में ज़मानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता देने के साथ अगली सुनवाई में पीड़िता के बयान दर्ज करने को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। जिसके बाद याची ने निचली अदालत में ज़मानत के लिए आवेदन किया था। निचली अदालत ने फिर पीड़िता का बयान दर्ज न होने पर याची की ज़मानत के आवेदन को ख़ारिज कर दिया था।
प्रतिवादी पक्ष ने अपनी प्रस्तुति में कहा था कि सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद अभियोजन पीड़िता का पता नहीं लगा पाया है जिसके कारण कोर्ट के समक्ष उसका बयान दर्ज नहीं हुआ है।
कोर्ट ने कहा कि निर्देश के बावजूद अभियोजन पक्ष पीड़िता को कोर्ट के समक्ष बयान के लिए प्रस्तुत नहीं कर सका इस लिए याची ने हाई कोर्ट में ज़मानत के लिए आवेदन किया है।
कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 436A का हवाला देकर कहा कि एक आरोपी को किये गए अपराध में निर्दिष्ट अधिकतम कारावास की अवधि के आधे से अधिक अवधि के लिए हिरासत में नहीं रखा जा सकता है और उक्त अवधि की समाप्ति पर कोर्ट द्वारा निजी मुचलके पर ज़मानत के साथ या ज़मानत के बिना उसे रिहा करना होगा।
कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 436A के तहत याची को प्राप्त ज़मानत का वैधानिक अधिकार इस बात से ख़त्म नहीं होता कि प्रयासों के बावजूद पीड़िता का पता नहीं लगाया सका है।
कोर्ट ने कहा कि “अभियोजन पक्ष का मामला यह नहीं है कि आरोपी के आचरण के कारण मुकदमे में देरी हो रही है, बल्कि यह ऐसा मामला है जहां पीड़िता गवाह के कटघरे में आने से बच रही है। पीड़िता का यह आचरण याचिकाकर्ता को जमानत की रियायत का हकदार बनाने के लिए पर्याप्त है। “
कोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर याची को शर्तों के साथ ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
केस: रवि कुमार बनाम जम्मू व कश्मीर राज्य Bail App No. 47/2023
पूरा आदेश यहाँ पढ़ें –